Bhagat Singh, Sukhdev, Rajguru को क्यों दी गयी थी फांसी? कैसे अंग्रेज़ों को याद दिलाया था को भारत हमारा है, भारत माता के तीन वीर सपूत भगत सिंह-सुखदेव-राजगुरु, पढ़िए पूरी कहानी
23 मार्च की वो शहादत :
तारीख 23 मार्च 1931
बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री के अनुसार भगत सिंह के वकील प्राण नाथ मेहता फांसी से 2 घंटे पहले जेल पहुंचे थे। वो लिखते हैं की भगत सिंह पिंजरे में बंद शेर की भाँती चक्कर काट रहे थे। देश के नाम सन्देश पूछे जाने पर उन्होंने बस दो शब्द कहे थे ” साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और इंक़लाब जिंदाबाद”। उसके बाद वकील प्राण नाथ मेहता राजगुरु की कोठरी पे पहुंचे उनके आख़िरी शब्द थे ” हम लोग जल्द मिलेंगे”। सुखदेव ने कहा ” वो कैरम बोर्ड ,मेरी मौत के बाद जेलर से ले लें जो जो उन्होंने उन्हें दिया है”। गीदड़ अंग्रेज़ों में इन तीनों क्रांतिकारियों का इतना खौफ़ था इन्होंने निर्धारित समय से 12 घंटे पहले ही फांसी दे दिया। भगत सिंह ने जेल के सफाई कर्मी से आख़िरी दिन अपने घर से बना खाना लाने को कहा था। भगत सिंह वह आख़िरी भोजन भी नहीं खा पाए । भगत सिंह ,सुखदेव, राजगुरु तीनों को कोठरी से निकाला गया। तीनों गले मिलते हैं और एक दुसरे का हाथ पकड़ अपना गीत गाने लगते हैं
” कभी वो दिन भी आएगा
कि जब आज़ाद हम होंगे
ये अपनी ही जमीं होगी
ये अपना आसमां होगा “
सफ़रोशी की तम्मना अब हमारे दिल में है गुनगुनाते हुए तीनों फंदे के पास लाये गए। इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे के साथ तीनों खुशी-खुशी लाहौर की सेंट्रल जेल में भारत की आज़ादी के लिए फांसी पर झूल गए और हमेशा के लिए अमर हो गए।
Bhagat Singh, Sukhdev, Rajguru को क्यों हुई थी फांसी की सज़ा ?
साइमन कमीशन के विरोध प्रदशन के दौरान अंग्रेज़ों ने प्र्दशनकारियों पे जमकर लाठीचार्ज किया , जिमसे श्री लाला लाजपत राय को बहुत गंभीर चोट आई । 17 नवंबर 1928 को लाला जी शहीद हो गए। इससे क्रांतिकारियों के बीच अत्यंत आक्रोश आ गया। और उस वक्त 20-22 वर्षीय युवा तीनों को टोली और चंद्र शेखर आज़ाद ने लाहौर में SP JP Saunders को गोली मार कर उसकी हत्या कर दी। और वो वहाँ से फरार हो गए।
उसके बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली में बम फेंका और पर्चे भी फेंके की ‘बहरों’ को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत थी। दोनों वहां से भागे भी नहीं और उन्होंने अपनी गिरफ़्तारी उसी वक्त वहीँ देदी। इसके बाद सुखदेव और राजगुरु की भी गिरफ़्तारी हो गयी। भगत सिंह ने अपने बचाव में कोई दलील नहीं दी और गीदड़ों ने इन्हें 7 अक्टूबर 1930 को फांसी की सजा सुनाई।
फांसी की तारीख 24 मार्च 1931, फिर 23 मार्च को फांसी क्यों?
भगत सिंह को हुई फांसी का विरोध पूरे देश में होने लगा। चारों ओर आक्रोश का माहौल था। भगत सिंह ने कई सारी पत्रिकाएं और किताबें लिखी थीं। इससे देश के युवा भगत सिंह से इतने प्रभावित हो रहे थे की जगह जगह इंक़लाब की सोच पैदा हो रही थी। धीरे-धीरे लोग लाहौर जेल के सामने जुटने लगे। अंग्रेज़ों के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी थी बढ़ते विरोध को देखकर। इससे घबराकर अंग्रेज़ों ने तीनों क्रांतिकारियों को 12 घंटे पहले ही 23 मार्च की शाम फांसी पे लटका दिया।
भगत सिंह एक क्रन्तिकारी सोच :
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब के बंगा में हुआ था। जलियांवाला बाग हत्याकांड और महात्मा गांधी के नेतृत्व वाले असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर , भगत सिंह छोटी उम्र से ही ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई में गहराई से शामिल हो गए। उनकी विचारधारा को करतार सिंह सराभा और चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे लोगों ने आकार दिया था। भगत सिंह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सबसे प्रभावशाली शख्सियतों में से एक थे। पूरे देश के युवा आज भगत सिंह(Bhagat Singh)को अपना आदर्श मानते हैं।
सुखदेव थापर :
सुखदेव थापर का जन्म 15 मई 1907 को लुधियाना पंजाब में हुआ था । सुखदेव बहुत ही तेज़ और संगठन चलाने में माहिर व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी बुद्धि से स्वतंत्रा संग्राम की इस लड़ाई में बहुत योगदान दिया जिससे उह्नें अपने क्रन्तिकारी साथियों से बहुत प्रशंसा मिली थी। उन्हें भगत सिंह का बहुत करीबी मन जाता था। उनका जीवन हमेशा न्याय और आज़ादी की लड़ाई में दिए गए योगदान के लिए हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।
शिवराम राजगुरु :
शिवराम राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को महाराष्ट्र के खेड़ में हुआ था। Bhagat Singh और Sukhdev की तरह ही अंग्रेज़ो के अत्याचार के अत्याचार से प्रभावित होकर उन्होंने उनके खिलाफ़ हो रहे आंदोलन में हिस्सा लेना शुरू किया और भारत के सबसे वीर क्रांतिकारियों में अमर हो गए। SP को गोली मारकर अंग्रेजी हुकूमत को तिलमिला देने में शिवराम पूरी तरह से भगत सिंह के साथ थे। मात्र 22 की उम्र में फांसी पर झूल जाने वाले इस वीर को सलाम।
आज पूरा देश 23 मार्च के दिन शहीद दिवस मना रहा है और इन अमर क्रांतिकारियों को याद कर रहा है। आइये हम भी इन्हे नमन करें और इनके जीवन से सीखें।
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