लोकपाल(Lokpal ) और लोकायुक्त(Lokayukt ) भारत में राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल संस्थानों को संदर्भित करते हैं। इन संस्थानों की स्थापना सार्वजनिक सेवक (public servants )और निर्वाचित प्रतिनिधियों(elected representative ) के खिलाफ भ्रष्टाचार(corruption ) की शिकायतों की जांच के लिए की गई है।
कब और कैसे बना लोकपाल(Lokpal )?
सिलेक्शन समिति के अंतर्गत section 4(1) Lokpal और Lokayukt Act 2013, भारत के राष्ट्रपति ने एक chairperson और 8 सदस्य नियुक्त किये। इस act के अनुसार Lokpal के सदस्यों को वह सारे आरोप देखने थे और उन आरोपों के चलते जांच पड़ताल करनी थी जो किसी लोकसेवक के ऊपर लगाए गए थे । इसके साथ ही इनका काम था उसकी जांच पड़ताल करना और उन्हें सबूतों के तौर पे दोषी करार करना। लोकपाल संस्था (Ombudsman ) की शुरुवात Sweden में 1713 में हुई। भारत में Ombudsman ) को लोकपाल या लोकायुक्त कहा जाता है।
क्या है भारत में लोकपाल (Lokpal) की ज़रूरत ?
भारत एक बहुत बड़ा देश है । बहुत बड़े बड़े leaders इस देख में हुए । प्रधान मंत्री के साथ साथ यहाँ बहुत सरे मिनिस्टर्स हैं । भारत में डिक्टेटरशिप नहीं बल्कि डेमोक्रेसी को माना जाता है । जब एक मंत्री नियुक्त किया जाता है , चाहे वो किसी राज्य का मुख्यमंत्री हो एक आईएएस अफसर हो या कोई और अफसर हो , भारत की जनता चाहती है की वह अफसर जनता के हित्त में काम करे और उनकी मदद करे , लेकिन अगर वोही अफसर भ्रष्टाचारी निकले तो ?
एक अफसर के पास इतनी पावर होती है की एक आम व्यक्ति उससे भिड़ने में विश्वास नहीं रखता । तो ऐसे में क्या किया जाये ? इसी प्रश्न को सुलझाने के लिए लोकपाल और लोकयुक्त को परिचित किया गया।
लोकपाल को परिचित करवाने का एक और मकसद था । भारत जैसे बड़े देश में सब करना मुमकिन है । भ्र्ष्टाचार हर एक देश में देखा जाता है परन्तु हमारे देश में भ्र्ष्टाचार बहुत ही तेज़ी से बढ़ता जा रहा है । भ्र्ष्टाचार के बढ़ने से निवेशकों (investers ) का भारत में हो रहे व्यापर या कई सरे कामो में इन्वेस्ट करना बहुत कम होगया है, इस समस्या के हल के लिए भी लोकपाल और लोकायुक्त का होना बहुत ज़रूरी है । लोकपाल और लोकायुक्त यह सुनिश्चित करेंगे की भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्यवाई हो ीऔर भ्रष्टाचार कम हो ।
इसी के साथ साथ लोकपाल और लोकायुक्त यह सुनिचित करता है की जो भी कार्यवाई हो रही है वो उच्चित ढंग से हो रही हो , जिसके कारन न कोई दोषी बचे और अगर कोई दोषी नहीं है तो वे बच सके । इसका काम है की जांच करते समाये कोई भी भ्र्ष्टाचार न हो और उच्च ढंग से साडी बातें पता की जा सकें।
लोकपाल का प्रस्ताव सबसे पहले 1960 के दशक में अशोक कुमार सेन ने रखा था।
क्या है Lokpal की संरचना एवं कार्यकाल?
लोकपाल एक बहुसदस्यीय निकाय(multimember body ) है जिसमें एक अध्यक्ष(chairperson ) और 8 सदस्य होते हैं। लोकपाल के अध्यक्ष या तो भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश(former chief justice of India ) या सर्वोच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश(former supreme court judge ), हों जिनके लोक प्रशासन, वित्त, कानून या भ्रष्टाचार विरोधी नीति में लगभग 25 वर्षों की विशेषज्ञता का अनुभव हो ।
चुने जाने वाले 8 सदस्यों में से : 50 प्रतिशत न्यायिक सदस्य(judicial members ) होने चाहिए और 50 प्रतिशत Sc/ST/OBC category के सदस्य होने चाहिए। लोकपाल अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक होता है।
कैसे किये जाते हैं Lokpal और Lokaykta नियुक्त ?
Lokpal
भारत के राष्ट्रपति , एक सिलेक्शन कमिटी की सहायता से लोकपाल नियुक्त करते हैं । उस समिति में prime minister , Lok Sabha speaker , chief justice , ये सब उस समिति के सदस्य होते हैं ।लोकपाल का अधिकार क्षेत्र प्रधान मंत्री, संसद सदस्यों और केंद्र सरकार के कर्मचारियों सहित सभी पर है।लोकपाल सार्वजनिक अधिकारियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करता है। यह प्रधान मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की भी जांच कर सकता है।
न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी ने भारत के लोकपाल के न्यायिक सदस्य के रूप में शपथ ली है। इसके अलावा श्री पंकज कुमार और श्री अजय तिर्की ने लोकपाल के सदस्य के रूप में पद की शपथ ली है।
Lokayukt
लोकायुक्त , governor द्वारा नियुक्त किया जाता है । लोकायुक्तों का अधिकार क्षेत्र मुख्यमंत्री, मंत्रियों, विधान सभा के सदस्यों (विधायकों) और अन्य सार्वजनिक अधिकारियों सहित राज्य सरकार के कर्मचारियों पर है। लोकायुक्त राज्य स्तर पर सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करता है। यह भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग से संबंधित शिकायतों को संबोधित करने के लिए एक स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करता है।
Lokpal पूछताछ में पीएम को छूट!
यदि आरोप अंतरराष्ट्रीय संबंधों, परमाणु ऊर्जा या बाहरी/आंतरिक सुरक्षा से संबंधित हैं तो लोकपाल प्रधानमंत्री के खिलाफ जांच नहीं कर सकता।प्रधानमंत्री के खिलाफ शिकायत पर जांच शुरू करने के लिए कम से कम दो-तिहाई लोकपाल पीठ की मंजूरी की आवश्यकता होती है। लोकपाल के पास सीबीआई की निगरानी और निर्देश देने का अधिकार है।
प्रधान मंत्री के खिलाफ कोई भी जांच बंद कमरे में की जाती है, और यदि शिकायत खारिज कर दी जाती है, तो फुटेज सार्वजनिक नहीं किया जाता है।
इन सब बातों को जानने के बाद पता चलता है की Lokpal और लोकयुक्त का होना बहुत आवश्यक है ताकि भारत में भ्रष्टाचार कम हो सके ।
ये भी पढ़ें: